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Monday, March 28, 2011

होली...., होली.

आखिर हमने होली मना ही डाली. ये बात और है कि इससे देश- दुनिया के पर्यावरण ko अच्छा खासा नुकसान हुआ तो दूसरी ओर हमारी जेब भी ढीली हुई.
मै होली का विरोधी नहीं हू, बल्कि उसे मनाने के तरीके मै  सुधार चाहता हू. जिसका होना हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी हो गया है. स्कूली समय मे एक कविता थी, कि ''परंपरा ko अंधी लाठी से मत तोड़ो......'' और तोड़ने कि जरुरत ही क्या है? हा सोचने कि जरूरत अवश्य है. हमारे जितने पर्व है वे सारे ही पर्व अच्छे विचार, सन्देश देते है, पर हम दीवाली पर राम के आदर्श या विचारो ko नही बल्कि रावण के विचारो ko..., होली पर अपनी बुराइया जलाने और आपसी शत्रुता मिटाते नही बल्कि लोगो से चंदा बसूल कर लकडिया जलाते है और  आपसी शत्रुता निकालने में लग जाते है..
हमारे सारे भारतीय पर्व एक व्यापक मेसेज ko अपने अंदर संजोय रहते है. बस हमें उन पर ध्यान देने
 कि जरूरत है.... 

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