कौन कहता विकास से नहीं डर या दबंग होने से ही वोट मिलते है..
हाल के बिहार चुनाव परिणाम ने यह जता दिया है कि 'ये पब्लिक है-सब जानती है.' भले देर से ही सही पर सब्र की इंतहा तक बिहार के लोगो ने लालू को बर्दाश किया. और जब पूरी तरह जनता को समझ आ गया कि ये बिहार के लिए विकास नही विनाशकारी है तो जनता ने लालू को आखिरकार पूरी तरह दरकिनार कर एक बेहतर विकल्प के रूप मे नीतेश को और उनके विकासकार्य को देखते हुए उन्हें फिर से मौका दे ही डाला जो कि बिहार की बेहतरी के लिए बेहद जरूरी भी हो गया था. लालू नेतो देश कि राजनीति को,मजाकिया मंच बना दिया था. जहा कुछ भी करो और पूछे जाने पर मजाक मै टाल देना उनकी स्टायल बन गया था. इसका अनुशरण अब कई नेता भी बखूबी करते देखे जा सकते है. यह बात बिलकुल सही है कि लालू में नेता होने के गुर तो है पर राजनीति के नहीं कामेडी के और यह बात अब बिहार की जनता को भी समझ आ गयी है. ये कामेडी के लिए ही जन्मे है. और जब एक कामेडियन राजनीति मे आएगा तो वह यह भी कामेडी से बाज थोड़े ही आएगा. इसी कारण लालू ने देश की राजनीति को भी मजाक बना दिया था. मै जब जयपुर मे विधार्थी था, तब राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक प्रोग्राम मे कोल्डड्रिंक
पीते लालू से किसी पत्रकार ने पूछा कि आप कोल्डड्रिंक के विरोधी होने पर भी इसे पी रहे है? तब देश का एक बढ़ा नेता(लालू) जबाब देता है कि मे तो इसे पीकर खत्म कर रहा हू. इतना बचकाना जबाब.. ऐसे एक नही ढेरो उदाहरण मिल जायेगे. लोग या मीडिया भले इसे मजाकिया नेता कहकर टाल दे पर देश मजाक से नही अनुशासन और समझदारी से चलाया जाता है, शायद लालू वर्षो राज करते-करते यह भूल ही गये और जनता ने भी मजाक- मजाक में अब उन्हें मजा चखा ही दिया. जनता अब शायद उन्हें नेता के रूप में नहीं बल्कि किसी कोमेडी सीरियल मे देखना चाहती है. क्रिकेट मे न चलते नवजोत सिंह सिद्धू की तरह लालू इसके लिया परफेक्ट रहेगे और वैसे भी लालू को कौनसी मुश्किल है इनका नाम तो पहले से ही कामेडी से जुड़ा है. अब तक राजनीति मे कामेडी की और अब कामेडी सीरियल मे. और शायद थ्रीइडियड्स के मुताबिक यही ट्रेक इनको चाहियें था. यदि ऐसा हुआ तो कुछ समय बाद मीडिया यही कहेगी की 'कामेडी' का दूसरा नाम है 'लालू '. या फिर लालू अब आये अपने रास्ते...
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Wednesday, November 24, 2010
Sunday, November 7, 2010
Thursday, November 4, 2010
दीपावली पर जलाएं मन के दिए
सभी विचारवान महानुभावों को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं...
दीपावली अंधकार में प्रकाश का पर्व है..
मुझे बस आपसे इतना ही कहना है कि जिस कारण से ये महान पर्व मनाये जाते हैं.. क्या उतने ही महान तरीके से हम इसे मनाते हैं। क्या दीपावली पर
सच्चे अर्थों में राम या महावीर याद आते हैं क्या किसी महापुरुष के जन्मदिन पर उनके जीवन को खुद में उतारने का भाव आता है? ,
यदि हॉ तो सार्थक है पर्व। और यदि ऐसा नही है तो फिर.. तकलीफ की बात है..
हम पढ़े-लिखे कहलाएं जाने वाले लोग क्या विवेक शून्य हो गए हैं या हम सोचना ही नही चाहते इन महत्वपूर्ण मुद्दो पर...
खैर अब भी समय है सोचे जागे और जगाएं.. तभी बढ़ेगा मानव, समाज और देश..
तो आओ बढ़ाएं अपने देश को... ऐसे पर्वों के माध्यम से आगे और आगे...
Wednesday, November 3, 2010
शर्दी हो गई शुरु.. अब तो पहनो कपड़े..
शर्दी की शुरुआत हो चुकी है बहुत समय से पैक किए रखे गर्म कपड़े और रजाईयां भी अपने घरोदों से निकल रहे हैं तो कही निकलने को बेताव हैं। ऐसे में मौसम का बदलता मिजाज भी खा़स एतियात बरतने का निर्देश देता है। और यह केवल कहने को नही बल्कि करने के एतियात हैं। जैसे खाने-पीने में, पहने-ओढ़ने में और उठने-बैठने जैसी कुछ सावधानियां मौसम के बदलाव संबंधी बीमारियों से निजात दिलाने में महत्वपूर्ण पार्ट अदा करती हैं। खास तौर पर में युवक-युवतियों से कहना चाहूगा कि वे उस समय कुछ ऐसा पहने की जिससे उनके सारे अंगों को अम्बर मिल जाए। कई बार फैशन या मौसम की न समझी के कारण भी हमे रोगों से दो-चार होना पढ़ता है। खैर में भी एक युवा हू और इस नाते ही सही पर में अपने युवा साथिओं से इतना जरुर कहूगा कि वे लापरवाही से नही हर जगह समझदारी से काम ले, जल्दबाजी या तुनक मिजाजी से नही बल्कि धैर्य से काम करे।
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