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Thursday, August 11, 2011

ऐसे लोग हो जन नायक.....

पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह अंगरक्षक और सेना के अधिनायक के साथ भ्रमण
पर निकले थे. शहर के बीचों-बीच वाली सड़क पर पहुँचे ही थे कि अकस्मात् एक
ढेला आकर महाराजा के माथे पर लगा, उन्हें बहुत तकलीफ हुई. अंगरक्षक और सेना
के लोग दौड़े और एक बुढ़िया को पकड़ लाये. बुढ़िया ने हाथ जोड़कर कहा--
सरकार ! मेरा बच्चा तीन दिनों से भूखा था, खाने को कुछ नहीं था. मैंने पके
बेल को देखकर ढेला मारा था. ढेला लग जाता, बेल टूट पड़ता उसे खिलाकर मैं
अपने बच्चे का प्राण बचा सकती. लेकिन दुर्भाग्य से ढेला आपको लग गया. मैं
निर्दोष हूँ, मुझे क्षमा कर दीजिये, महाराज ! महाराजा ने करुणा भरी दृष्टि
से बुढ़िया की ओर देखते हुए कहा-' बुढ़िया को एक हजार रूपये और खाने का
सामान देकर आदरपूर्वक घर भेज दो'. मंत्री ने कहा यह क्या कर रहे हैं,
महाराज! इसने आपको ढेला मारा है, इसे तो दंड मिलना चाहिए.महाराज हंस पड़े.
उन्होंने कहा- मंत्री जी, जब बिना बुद्धि वाला पेड़ ढेला मारने पर सुन्दर
फल देता है अब मैं प्राण और बुद्धि वाला होकर उसे दण्ड कैसे दे सकता
हूँ.आज आवश्यकता है इसे उदार, सरल प्रकृति के व्यक्तित्व क़ी. ऐसे लोग ही
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह अंगरक्षक और सेना के अधिनायक के साथ भ्रमण
पर निकले थे. शहर के बीचों-बीच वाली सड़क पर पहुँचे ही थे कि अकस्मात् एक
ढेला आकर महाराजा के माथे पर लगा, उन्हें बहुत तकलीफ हुई. अंगरक्षक और सेना
के लोग दौड़े और एक बुढ़िया को पकड़ लाये. बुढ़िया ने हाथ जोड़कर कहा--
सरकार ! मेरा बच्चा तीन दिनों से भूखा था, खाने को कुछ नहीं था. मैंने पके
बेल को देखकर ढेला मारा था. ढेला लग जाता, बेल टूट पड़ता उसे खिलाकर मैं
अपने बच्चे का प्राण बचा सकती. लेकिन दुर्भाग्य से ढेला आपको लग गया. मैं
निर्दोष हूँ, मुझे क्षमा कर दीजिये, महाराज ! महाराजा ने करुणा भरी दृष्टि
से बुढ़िया की ओर देखते हुए कहा-' बुढ़िया को एक हजार रूपये और खाने का
सामान देकर आदरपूर्वक घर भेज दो'. मंत्री ने कहा यह क्या कर रहे हैं,
महाराज! इसने आपको ढेला मारा है, इसे तो दंड मिलना चाहिए.महाराज हंस पड़े.
उन्होंने कहा- मंत्री जी, जब बिना बुद्धि वाला पेड़ ढेला मारने पर सुन्दर
फल देता है अब मैं प्राण और बुद्धि वाला होकर उसे दण्ड कैसे दे सकता
हूँ.आज आवश्यकता है इसे उदार, सरल प्रकृति के व्यक्तित्व क़ी. ऐसे लोग ही जन नायक बन सकते हैं.
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह अंगरक्षक और सेना के अधिनायक के साथ भ्रमण
पर निकले थे. शहर के बीचों-बीच वाली सड़क पर पहुँचे ही थे कि अकस्मात् एक
ढेला आकर महाराजा के माथे पर लगा, उन्हें बहुत तकलीफ हुई. अंगरक्षक और सेना
के लोग दौड़े और एक बुढ़िया को पकड़ लाये. बुढ़िया ने हाथ जोड़कर कहा--
सरकार ! मेरा बच्चा तीन दिनों से भूखा था, खाने को कुछ नहीं था. मैंने पके
बेल को देखकर ढेला मारा था. ढेला लग जाता, बेल टूट पड़ता उसे खिलाकर मैं
अपने बच्चे का प्राण बचा सकती. लेकिन दुर्भाग्य से ढेला आपको लग गया. मैं
निर्दोष हूँ, मुझे क्षमा कर दीजिये, महाराज ! महाराजा ने करुणा भरी दृष्टि
से बुढ़िया की ओर देखते हुए कहा-' बुढ़िया को एक हजार रूपये और खाने का 
सामान देकर आदरपूर्वक घर भेज दो'. मंत्री ने कहा यह क्या कर रहे हैं,
महाराज! इसने आपको ढेला मारा है, इसे तो दंड मिलना चाहिए.महाराज हंस पड़े.
उन्होंने कहा- मंत्री जी, जब बिना बुद्धि वाला पेड़ ढेला मारने पर सुन्दर
फल देता है अब मैं प्राण और बुद्धि वाला होकर उसे दण्ड कैसे दे सकता
हूँ.आज आवश्यकता है इसे उदार, सरल प्रकृति के व्यक्तित्व क़ी. ऐसे लोग ही जन नायक बन सकते हैं

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