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Saturday, January 1, 2011

नव वर्ष की मुझे भी देनी पड़ी बधाई...

नया वर्ष आया रे - नया वर्ष आया रे
 हर्ष हर्ष छाया रे - हर्ष हर्ष छाया रे
                                            भाई वाह, लो अब 2011 बनकर फिर से आ गया यह नववर्ष. गये साल की तरह इसे भी हमने मना डाला. इसे मनाने में भी हमने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. और छोड़े भी क्यों..?  हमें तो अवसर चाहिए...
और इससे बेहतर मौका हमें कहा मिलेगा. वैसे भी हमें विदेशी पर्वो को मनाना अपनी शान लगता है सो शान के खातिर हम सबकुछ कर गुजरने को भी तैयार हो जाते है... फिर चाहे इसके लिए हमें अपनी संस्क्रति या संस्कारो से ही समझौता क्यों न करना पड़े...

2 comments:

Anonymous said...

good think..

rahul said...

that,s good..