जय जिनेन्द्र.....
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Saturday, September 18, 2010
Saturday, September 11, 2010
आत्मा से परमात्मा बनने का पर्व दशलक्षण

संयम और साधना का यह पर्व अपने को अपने से जोड़ता है। इस समय लोग धर्म से जुड़ते है व्रत-उपवास करते हुए संयम का पालन करते हैं। अपना ज्यादा से ज्यादा समय साधना में लगाते हैं। दशलक्षण का मतलब आत्मा के दश प्रमुख लक्षणों की साधना करने से है, वैसे आत्मा अनंत गुण और धर्म वाली है। (यदि आप सोचते हैं आत्मा किसने देखा कहॉ है? तो अभी इतना जान ले कि ''This Body - Dead Body = ATMA'' ) ये दशधर्म--उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्चार्य हैं। उत्तम शब्द सम्यक्दर्शन यानि सही श्रद्धान का बोधक है। उसके साथ क्षमा, मार्दव,आर्जव आदि आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं। जिनकी पवित्रता से आत्मा परमात्मा बन जाता है। यानि यह पर्व अपनी आत्मा को जानकर मानकर और उसमें तन्मय होकर खुद परमात्मा बनने का पावन समय है। परमात्मा अवस्था ऐसी है जहॉ शाश्वत सुख है। किसी भी प्रकार का कोई दुख, कोई दर्द नहीं..
तो आओ सादगी, संतोष और आत्मसंयम के साथ मनाएं इस पावन पर्व को...
नाम का लोभ क्यों करते हैं लोग ?
जीव-आत्मा की कहानी कुछ इस तरह की है कि वह एक के बाद एक जन्म धारण करता है फिर भी हमेशा नए जन्म को पाकर नाम बनाने के चक्कर में मदमस्त संसार सागर में इस क़दर डूब जाता है कि वहां कैसे भी नाम बने बस, अपना नाम बनाना चाहता है पर आखिर क्यों ? कुछ ख़बर नही....
जग में मिथ्यात्वी जीव भ्रम करे है सजीव,
भ्रम के प्रभाव से बहा है आगे बहेगा ।
नाम रखिवे को महारम्भ करे दंभ करे,
यो न जाने दुर्गति में दुख कौन सहेगा।।
बार-बार कहे में ही भागचन्द धनवन्त.
मेरा नाम जगत में सदाकाल रहेगा।
यही ममता सो गहो आयो है अनंतकाल,
आगे योनि-योनि में अनंत नाम गहेगा।।
जग में मिथ्यात्वी जीव भ्रम करे है सजीव,
भ्रम के प्रभाव से बहा है आगे बहेगा ।
नाम रखिवे को महारम्भ करे दंभ करे,
यो न जाने दुर्गति में दुख कौन सहेगा।।
बार-बार कहे में ही भागचन्द धनवन्त.
मेरा नाम जगत में सदाकाल रहेगा।
यही ममता सो गहो आयो है अनंतकाल,
आगे योनि-योनि में अनंत नाम गहेगा।।
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