गिरी गिरनार की गुफाओ में आज से 2000 वर्ष पहले महाज्ञानी धरसेन आचार्य विचरण किया करते थे। ज्ञान-ध्यान में लवलीन रहने वाले ये आचार्य जब शारीरिक अवस्था से कमजोर हुए तब उन्हें श्रुत परंपरा /सुखी होने के उपाय के मार्ग के विलुप्त होने का विचार आया.. उसी दिन रात्रि के अंतिम पहर में उन्होंने अपने पास आते दो उन्नत बैलो को देखा, जैसे ही उन्होंने अपनी आखे खोली सामने दो मुनि राज पास आते दिखे.
आचार्य को नमोस्तु कर वे दोनों मुनिराज विनय पूर्वक आचार्य से अध्ययन का निवेदन करने लगे ,
आचार्य ने उनकी परीक्षा हेतु उन्हें एक -एक मंत्र दिया और उन्हें स्वयम सिद्ध करने को कहा, दोनों ने मंत्र सिद्ध किया दो देवंग्नाये प्रगट हुई पर वे सुन्दर नहीं थी। दोनों मुनिराज - भूतबलि और पुष्पदंत ने विचार कर मंत्रो की शुद्धी की तब दो सुन्दर देवंग्नाये प्रगट हुई . दोनों देवांगनाओ ने जब मुनिराजो से कुछ मागने को कहा तो विषयों की आशा से रहित मुनिराज ने कहा हे देवियो हमें तुमसे कोई प्रयोजन नहीं हमें तो गुरु आज्ञा पूरी करनी थी।
इसके बाद गुरु के पास पहुचे, गुरु ने योग्य जान शिक्षा देना शुरू कर दी...
जिसके परिणाम स्वरूप दोनों आचार्य भूतबलि और पुष्पदंत ने एक ग्रन्थ लिखा, जो जिनागम का पहला ग्रन्थ बना और वह आज के दिन ही लिखा गया इसलिए इस दिन को श्रुत पंचमी पर्व के नाम से जाना गया. जिसका मंगलाचरण णमोकार महामंत्र है।
- विकास जैन
आचार्य को नमोस्तु कर वे दोनों मुनिराज विनय पूर्वक आचार्य से अध्ययन का निवेदन करने लगे ,
आचार्य ने उनकी परीक्षा हेतु उन्हें एक -एक मंत्र दिया और उन्हें स्वयम सिद्ध करने को कहा, दोनों ने मंत्र सिद्ध किया दो देवंग्नाये प्रगट हुई पर वे सुन्दर नहीं थी। दोनों मुनिराज - भूतबलि और पुष्पदंत ने विचार कर मंत्रो की शुद्धी की तब दो सुन्दर देवंग्नाये प्रगट हुई . दोनों देवांगनाओ ने जब मुनिराजो से कुछ मागने को कहा तो विषयों की आशा से रहित मुनिराज ने कहा हे देवियो हमें तुमसे कोई प्रयोजन नहीं हमें तो गुरु आज्ञा पूरी करनी थी।
इसके बाद गुरु के पास पहुचे, गुरु ने योग्य जान शिक्षा देना शुरू कर दी...
जिसके परिणाम स्वरूप दोनों आचार्य भूतबलि और पुष्पदंत ने एक ग्रन्थ लिखा, जो जिनागम का पहला ग्रन्थ बना और वह आज के दिन ही लिखा गया इसलिए इस दिन को श्रुत पंचमी पर्व के नाम से जाना गया. जिसका मंगलाचरण णमोकार महामंत्र है।
- विकास जैन
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