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Tuesday, December 14, 2010

दिल्ली मजदूर बना देती है...

दिल्ली शहर भले देश की राजधानी हो पर यहां रहने वाला हर आदमी भागता

दिखता है। मुझे लगता है कि दिल्ली लोगों को पूरी तरह मजदूर बना देती है।
 और यह एक सुविधा सम्पन्न जीवन के लिए आवश्यक भी लगता है,जिसकी तमन्ना हर आदमी अपने लिए और अपने परिवार के लिए रखता है। मुझे इसी तरह की एक कहानी याद आती है कि एक राजा एक बार प्रसन्न होकर एक व्यक्ति को इनाम स्वरूप जमीन देता है और कहता है कि जितनी जमीन तुम सुबह से साम तक कदमों से मापकर ले पाओ ले लों, वह तुम्हारी हो जाएगी, व्यक्ति प्रसन्नता से सुवह जल्दी निकलता है और ज्यादा के चक्कर में दौड़ते-भागते जब वापस आता है तो अधिक जमीन की लालसा में पड़कर वह इतना थक चुका होता है कि वह अपने प्राण गवा बैठता है । दिल्ली में रहने वाले लोगों का हाल कुछ इसी तरह का है।
 जीवन कहां से शुरु हुआ और कब खत्म होने को है कुछ सोचने का समय नही। बस ज्यादा से ज्यादा धनार्जन करने में लगे रहना ही इनका कर्तव्य  बन  गया  है, इनके पास  न तो किसी के लिए समय है और न ही खुद के या आत्म चिन्तन के लिये...  
                                          भाई वाह रे दिल्ली...

Wednesday, November 24, 2010

लालू को जनता अब नेतागिरी मे नही बल्कि उनकी सही जगह कामेडी सीरियल मे देखना चाहती है..

कौन कहता विकास से नहीं डर या दबंग होने से ही वोट मिलते है..
हाल के बिहार चुनाव परिणाम ने यह जता दिया है कि 'ये पब्लिक है-सब जानती है.' भले देर से ही सही पर सब्र की इंतहा तक बिहार के लोगो ने लालू को बर्दाश किया. और जब पूरी तरह जनता को समझ आ गया कि ये बिहार के लिए  विकास नही विनाशकारी है तो जनता ने लालू को आखिरकार पूरी तरह  दरकिनार कर एक बेहतर विकल्प के  रूप मे नीतेश को और उनके विकासकार्य  को देखते हुए उन्हें  फिर से मौका दे ही डाला जो कि बिहार की बेहतरी के लिए बेहद जरूरी भी हो गया था. लालू नेतो देश कि राजनीति को,मजाकिया मंच बना दिया था. जहा कुछ भी करो और पूछे जाने पर मजाक मै टाल देना उनकी स्टायल बन गया था. इसका अनुशरण अब कई नेता भी बखूबी करते देखे जा सकते  है. यह बात बिलकुल सही है कि  लालू में नेता होने के गुर तो है पर राजनीति के नहीं  कामेडी के  और यह बात अब बिहार की जनता को भी समझ आ गयी है. ये कामेडी के लिए ही जन्मे है. और जब एक कामेडियन राजनीति मे आएगा तो वह यह भी  कामेडी से बाज थोड़े ही आएगा. इसी कारण लालू ने देश की राजनीति को भी  मजाक बना दिया था. मै जब जयपुर मे विधार्थी था, तब राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक प्रोग्राम मे कोल्डड्रिंक
पीते लालू से किसी पत्रकार ने पूछा कि आप  कोल्डड्रिंक के विरोधी होने पर भी इसे पी रहे  है? तब देश का एक बढ़ा नेता(लालू) जबाब देता है कि मे तो इसे पीकर खत्म कर रहा हू. इतना बचकाना जबाब..  ऐसे एक नही ढेरो उदाहरण मिल जायेगे.  लोग या मीडिया भले इसे मजाकिया नेता कहकर टाल दे पर देश मजाक से नही अनुशासन और समझदारी से चलाया जाता है, शायद लालू वर्षो राज करते-करते यह भूल ही गये और जनता ने भी मजाक- मजाक में अब उन्हें मजा चखा ही दिया. जनता अब शायद उन्हें नेता के रूप में नहीं बल्कि  किसी कोमेडी सीरियल मे देखना चाहती है. क्रिकेट मे न चलते नवजोत सिंह सिद्धू की तरह लालू इसके लिया परफेक्ट रहेगे और वैसे भी लालू को कौनसी मुश्किल है इनका नाम तो पहले से ही कामेडी से जुड़ा है.  अब तक राजनीति मे कामेडी की और अब कामेडी सीरियल  मे. और शायद  थ्रीइडियड्स के मुताबिक यही ट्रेक  इनको चाहियें था. यदि ऐसा हुआ तो कुछ समय बाद मीडिया यही कहेगी की  'कामेडी' का दूसरा नाम है 'लालू '. या फिर लालू अब आये अपने रास्ते...

Sunday, November 7, 2010

कालेज-DPMI

 ये रहे मेरे छात्र.. विकास जैन

Thursday, November 4, 2010

दीपावली पर जलाएं मन के दिए

सभी विचारवान महानुभावों को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं...

दीपावली अंधकार में प्रकाश का पर्व है..

दीपावली पर भगवान राम और महावीर के जीवन पर विचार कर उनका चरित स्वयं के जीवन में उतारने का प्रयास करना ही वास्तव में दीपावली मनाना है। बाकी सब तो मात्र बिना विचारी रुढ़ परम्परा है। जिसे सब न जाने क्यों ढोते जा रहे हैं।


मुझे बस आपसे इतना ही कहना है कि जिस कारण से ये महान पर्व मनाये जाते हैं.. क्या उतने ही महान तरीके से हम इसे मनाते हैं। क्या दीपावली पर
सच्चे अर्थों में राम या महावीर याद आते हैं क्या किसी महापुरुष के जन्मदिन पर उनके जीवन को खुद में उतारने का भाव आता है? ,
यदि हॉ तो सार्थक है पर्व। और यदि ऐसा नही है तो फिर.. तकलीफ की बात है..
हम पढ़े-लिखे कहलाएं जाने वाले लोग क्या विवेक शून्य हो गए हैं या हम सोचना ही नही चाहते इन महत्वपूर्ण मुद्दो पर...
खैर अब भी समय है सोचे जागे और जगाएं.. तभी बढ़ेगा मानव, समाज और देश..
तो आओ बढ़ाएं अपने देश को... ऐसे पर्वों के माध्यम से आगे और आगे...

Wednesday, November 3, 2010

शर्दी हो गई शुरु.. अब तो पहनो कपड़े..

शर्दी की शुरुआत हो चुकी है बहुत समय से पैक किए रखे गर्म कपड़े और रजाईयां भी अपने घरोदों से निकल रहे हैं तो कही निकलने को बेताव हैं। ऐसे में मौसम का बदलता मिजाज भी खा़स एतियात बरतने का निर्देश देता है। और यह केवल कहने को नही बल्कि करने के एतियात हैं। जैसे खाने-पीने में, पहने-ओढ़ने में और उठने-बैठने जैसी कुछ सावधानियां मौसम के बदलाव संबंधी बीमारियों से निजात दिलाने में महत्वपूर्ण पार्ट अदा करती हैं। खास तौर पर में युवक-युवतियों से कहना चाहूगा कि वे उस समय कुछ ऐसा पहने की जिससे उनके सारे अंगों को अम्बर मिल जाए। कई बार फैशन या मौसम की न समझी के कारण भी हमे रोगों से दो-चार होना पढ़ता है। खैर में भी एक युवा हू और इस नाते ही सही पर में अपने युवा साथिओं से इतना जरुर कहूगा कि वे लापरवाही से नही हर जगह समझदारी से काम ले, जल्दबाजी या तुनक मिजाजी से नही बल्कि धैर्य से काम करे।

Sunday, October 31, 2010

घोटालों की ओर...

भारत देश अब घोटालों का देश बनता जा रहा है। यहॉ आए दिन घोटाले होते रहते हैं। पहले जहॉ इसे शर्म से डूब मरने वाली बात मानी जाती थी वही अब इसे फैशन समझकर नामी-गिरामी नेता अपनाते जा रहे हैं। यह अब कोई बड़ा अपराध नही रह गया। पहले की बात की जाए तो राजीव गॉधी के समय उनके कुछ करोड़ के घोटाले का पर्दाफास होने से कांग्रेस की सरकार को सत्ता से हाथ धोने पड़ गए थे,और अब तो लालू ,कोड़ा और हाल ही में हुए कॉमनवेल्थ गेम में अरबों रुपए का घोटाला होने के बावजूद भी सरकार क्या घूस खोर भी अपनी जगह पर ही खिल-खिलाकर हंसते देखे जा सकते हैं।कहते हैं जमाना बदल गया अब तो नेता आपस में मिलने पर यही पूछते हैं कि तुमने कितने घोटाले किए। खैर जाने दीजिए इन बातों में हम पढ़े ही क्यों? लेकिन एक बात जरुर समझना चाहता हूं, आखिर देश को धोके में डालकर या उससे गद्दारी करके कमाएं करोड़ो रुपए से अपनी तिजोरी भरने वाले ये गद्दा कितने फल-फूल पाएंगे? आखिरकार पैसे से खाना आ सकता है, पर उसे खाने के लिए भूख कहॉ से लाओगे ? पैसे से भीड़ मिल सकती है, पर सच्चा प्यार कहॉ से लाओगे ? आराम के बिस्तर लाए जा सकते हैं पर आराम या नींद कहॉ से लाएगे ?




आदमी को आदमी में खोजता हूं में।


जाने क्यों परमात्मा से जूझता हू में।।


हॉ पता है कल ये धरती नाज देती थी।


हुई बंजर अब भला क्या खाक देती है।।

Thursday, October 21, 2010

क्या हम जिन्दा है ?

देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सभी व्यवस्थाये चरमरा रही है : और इसकी वजह है आचार की जगह दुराचार का बोल-बाला होना : इसको बढ़ाबा देने वाले भी कोई और नहीं हम खुद ही है : अब तो दुराचार फैशन बन गया है : ऐसा नहीं कि पहले दुराचार नहीं था : पर तब  दुराचार को दुराचार समझा जाता था, और दुराचारी को एक डर बना रहता था : लेकिन अब तो इन्ही की जमात देखने को मिलती है : जो  आधुनिकता और फैशन के नाम पर इसे  दिन-दुनी रात-चौगनी गति से बढ़ने मै लगे है : और कही न कही हम भी इसे फैलाने मै उनका सहयोग कर रहे है :पहले  दुराचार की बात सोचना भी गलत माना जाता था, फिर मात्र करना गलत  माना जाने लगा, धीरे-धीरे दुराचार करना नहीं मात्र दुराचारी  कहलाना गलत माना जाने लगा और अब तो यह फैशन मै है :

Tuesday, October 5, 2010

happiness

न्याय से कमाओ....
                               
  विवेक से खर्च करो....
                                
    संतोष से रहो....

Saturday, September 18, 2010

बात में दम...

जय जिनेन्द्र.....

Saturday, September 11, 2010

आत्मा से परमात्मा बनने का पर्व दशलक्षण

दशलक्षण पर्व की शुभकामनाएं... यह कोई जाति विशेष का पर्व नही अपितु जन-जन का पर्व है। जैसे बीमार या स्वस्थ व्यक्ति कोई भी हो सकता है वैसे ही इस पर्व को प्रत्येक सुखार्थी मना सकता है। बस वह आत्म नियंत्रण और आत्मशोधन में लगाएं ज्यादा से ज्यादा समय...

संयम और साधना का यह पर्व अपने को अपने से जोड़ता है। इस समय लोग धर्म से जुड़ते है व्रत-उपवास करते  हुए  संयम का पालन करते हैं। अपना ज्यादा से ज्यादा  समय  साधना में लगाते हैं।  दशलक्षण का मतलब आत्मा के दश प्रमुख लक्षणों  की साधना करने से  है, वैसे आत्मा अनंत गुण और धर्म वाली है। (यदि आप सोचते हैं आत्मा किसने देखा कहॉ है? तो अभी इतना जान ले कि ''This Body - Dead Body = ATMA'' )  ये दशधर्म--उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्चार्य हैं। उत्तम शब्द सम्यक्दर्शन यानि सही श्रद्धान का बोधक है। उसके साथ क्षमा, मार्दव,आर्जव आदि आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं। जिनकी पवित्रता से आत्मा परमात्मा बन जाता है। यानि यह पर्व अपनी आत्मा को जानकर मानकर और उसमें तन्मय  होकर खुद परमात्मा बनने का पावन समय है। परमात्मा अवस्था  ऐसी है जहॉ शाश्वत सुख  है। किसी भी प्रकार का  कोई दुख, कोई दर्द नहीं.. 
   तो आओ सादगी, संतोष और आत्मसंयम के साथ मनाएं इस पावन पर्व को...

नाम का लोभ क्यों करते हैं लोग ?

जीव-आत्मा की कहानी कुछ इस तरह की है  कि वह एक के बाद एक जन्म धारण करता है फिर भी हमेशा नए जन्म को पाकर नाम बनाने के चक्कर में  मदमस्त संसार सागर में इस क़दर  डूब जाता  है  कि वहां  कैसे भी नाम बने बस,  अपना नाम बनाना चाहता है पर आखिर क्यों ?  कुछ ख़बर नही....


जग में मिथ्यात्वी जीव भ्रम करे है सजीव,


भ्रम के प्रभाव से बहा है आगे बहेगा ।


नाम रखिवे को महारम्भ करे दंभ करे,


यो न जाने दुर्गति में दुख कौन सहेगा।।


बार-बार कहे में ही भागचन्द धनवन्त.


मेरा नाम जगत में सदाकाल रहेगा।


यही ममता सो गहो आयो है अनंतकाल,


आगे योनि-योनि में अनंत नाम गहेगा।।

Monday, August 30, 2010

ये डेल्ही है.....?

मै पिछले एक महीने से  डेल्ही मै हु यहाँ का अनुभव भी अलग ही है. यह एक ऐसी  दुनिया है. जहा लोग भाग तो रहे है पर कहा,  इसकी किसी को  खबर ही कहा है ?  या कहे कि ये सोचने की फुर्शत ही नहीं है. वही  कामनवेल्थ की चर्चा जोरो पर है. और उसके भ्रष्टाचार के  तो कहने ही क्या ?.  डेल्ही के बारे मै आप से बहुत सी बाते शेयर करना चाहता हु और आप से भी जानना चाहता हु.... पर समय ....खैर फिर कभी जरुर....बात करेगे....अभी माफ करे.....

Thursday, July 1, 2010

अब है बारिश का इंतजार



नमस्कार...
           इस बार गर्मी ने खूब 
तमासा दिखाया 
                     और  
चाहते हुए भी
 लोगो ने पसीने से जमकर नहाया.
 इसका श्रेय सूरज को
कम नहीं जाता है. जिसने जमकर अपना काम पूरी ईमानदारी से किया और हमारे देश के सभी भागो यानि की जम्मू से कन्या कुमारी तक जोरदार गर्मी बरसाई.  हम सूरज को धन्यवाद देते है कि भले उसका  कार्य कठोर या यातना जन्य रहा पर किया गया  पूरी कर्तव्यनिष्ठां से. परन्तु क्या  बदलो से भी ऐसी ईमानदारी की आस की जा सकती है कि बे गरजे या न गरजे पर बरसे और ऐसा बरसे की हम गर्मी की सारी दिक्कते भूलकर बस गा बैठे की....
 आज रपट जाये तो हमे न उठइयो..

Sunday, June 6, 2010

यह भी यही ...

पिछले दिनों अमिताभ बच्चन भी ट्विटर पर आ गए। उन्होंने अपना नाम सीनियर बच्चन रखा है। यह ठीक भी है, क्योंकि अभिषेक बच्चन पहले से ही जूनियर बच्चन के नाम से ट्विट कर रहे हैं। बच्चन पिता-पुत्र के साथ हिंदी फिल्मों के अनेक सितारे ट्विटर पर हैं। पापुलर सितारों में शाहरुख खान, सलमान खान, रितिक रोशन, अर्जुन रामपाल, शाहिद कपूर, प्रियंका चोपड़ा, मल्लिका शेरावतyah, गुल पनाग, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण आदि रेगुलर ट्विट करते हैं। यहां से इनके प्रशंसकों को सारी ताजा सूचनाएं मिलती रहती हैं। साथ ही सितारों को फीडबैक भी मिल जाता है। कम से कम उन्हें अंदाजा हो जाता है कि उनके प्रशंसक क्या सोच रहे हैं?

Saturday, June 5, 2010

गर्मी के जैसी ही चाहिए बारिस...


गर्मी से जहा सब का हाल बेहाल है वही अब कुछ जगहों पर बारिस होने से कुछ राहत भी मिली है पर इस बार बारिसकी ज्यादा आवश्यकता महसूस होने लगी हैउस का कारण यह भी हो सकता की इस बार गर्मी ने थोडा ज्यादा हीपरेशां कर दिया
खैर अब तो पानी भी गर्मी की तरह ही जोरदार चाहिए...

Monday, May 24, 2010


गुलमोहर गुलनार चमेली


या गुलाब की प्रिय सहेली


तुमको फूलो में फूलो की


रानी कैसे मानु ...


मेरे आगन में खेलो तो जानू ....

Friday, May 14, 2010

हाल में हुआ इन्दोर में एक समाचार पत्र पर हमला सम्पूर्ण पत्रिकारिता पर हमला है।
पत्रकारो को ही नहीं बल्कि सभी देश के जिम्मेदार नागरिको को भी इस घटना का विरोध प्रदर्शित करना चाहिए। क्योकि यह देश ke चौथे स्तम्ब पर हमला है।
तो आओ मिलके आवाज उठाए और देश के लिए कुछ कर दिखाए ...

Sunday, May 2, 2010

Friday, April 23, 2010

शुक्रगुजारी के लिये..........

आप सब ब्लॉग से जुड़ने वालो को विकास का धन्यवाद ...........
विचारो के माध्यम से हम सब मिलकर क्यों न कल को बेहतर बनाने का सुन्दर प्रयास करे देश, राष्ट्र, समाज को नई दिशा की ओर ले चले .............
चलिए बढाये कदम आप और हम .......

Tuesday, April 13, 2010

भिंड शिबिर के लिए आमंत्रण स्वीकारे
जग में हिंसा फैलाने को जब कातिल आमादा हो |
भारत की वह ठोस अहिसा हम देगे ये वादा है ||
विकास जैन

Thursday, March 18, 2010

namaskar

aaooo... ham sab

milkar kuch

behtar disha

mai soche...............