शादी को पर्व कहो.....
शादी का एक नाम विवाह भी है जिसका मतलब विशिष्ठ प्रकार से वहन करना..
तो किसी दार्शनिक ने इसे - दो दुखी मिलकर सुखी होने की कल्पना कहा है।
वास्तव में विवाह नव युवक-युवती दोनों के परस्पर मिलकर दाम्पत्य जीवन की शुरूआत है. जिसमे दो संस्कृतियो/परिवारों का आपसी सामंजस / मिलन होता है।
मै शादी को पर्व कहने के पक्ष में हूँ। भले ही शादी को लोग पर्व न कहे पर लगभग सभी के जीवन में यह घटना घाटित होती ही है।
शादी को विवाह के अलावा भी कई नामो से जाना जाता है। जैसे- बंधन-सूत्र, परिणय, कुडमई, सम्बन्ध, दुर्घटना, लड्डू इत्यादी.
इसके बारे में लोगो के भी अपने-अपने अनुभव के आधार पर ढेरो मत है।
वैसे अनुभवियो के अनुसार शादी नवयुवक को वहार की तरह तो शादी के बाद धीरे-धीरे भार की तरह प्रतीत होती है।
खैर मै शादी को पर्व की कोटि में शामिल कराना चाहता हूँ। और यह बात मै बिना आधार के नहीं कह रहा हूँ। बल्कि इसके लिए ठोस प्रमाण भी रहा हूँ।
पर्व यानि एक अवसर या मौका जो किसी घटना या व्यक्ति से सम्बंधित हो। और शादी तो किसी व्यक्ति से सम्बन्धित सबसे बड़ी घटना है। आखिर फिर क्यों इसे पर्व की श्रेणी में सामिल नहीं किया गया।
इतना ही नहीं इसका विस्तार भी किसी अन्य पर्व से कम नहीं बल्कि ज्यादा ही बैठता है। क्योकि यह घटना आमो-खास सभी आदमियों के जीवन में घटित होने वाली खाश -तोर की आम घटना है।
और सुनो.. जहा पर्व अपने- अपने देश तक ही सीमित है वही यह पर्व मेरा मतलब है शादी देश और विदेश
सर्वत्र अत्यंत खुशी से मनाया जाता है।
बोलो शादी पर्व की जय हो......
विकास जैन ऍम.डी.जीवन शिल्प इंटर कॉलेज बानपुर, ललितपुर (उ.प्र.)
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