दशलक्षण पर्व की शुभकामनाएं... यह कोई जाति विशेष का पर्व नही अपितु जन-जन का पर्व है। जैसे बीमार या स्वस्थ व्यक्ति कोई भी हो सकता है वैसे ही इस पर्व को प्रत्येक सुखार्थी मना सकता है। बस वह आत्म नियंत्रण और आत्मशोधन में लगाएं ज्यादा से ज्यादा समय...
संयम और साधना का यह पर्व अपने को अपने से जोड़ता है। इस समय लोग धर्म से जुड़ते है व्रत-उपवास करते हुए संयम का पालन करते हैं। अपना ज्यादा से ज्यादा समय साधना में लगाते हैं। दशलक्षण का मतलब आत्मा के दश प्रमुख लक्षणों की साधना करने से है, वैसे आत्मा अनंत गुण और धर्म वाली है। (यदि आप सोचते हैं आत्मा किसने देखा कहॉ है? तो अभी इतना जान ले कि ''This Body - Dead Body = ATMA'' ) ये दशधर्म--उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन और उत्तम ब्रह्चार्य हैं। उत्तम शब्द सम्यक्दर्शन यानि सही श्रद्धान का बोधक है। उसके साथ क्षमा, मार्दव,आर्जव आदि आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं। जिनकी पवित्रता से आत्मा परमात्मा बन जाता है। यानि यह पर्व अपनी आत्मा को जानकर मानकर और उसमें तन्मय होकर खुद परमात्मा बनने का पावन समय है। परमात्मा अवस्था ऐसी है जहॉ शाश्वत सुख है। किसी भी प्रकार का कोई दुख, कोई दर्द नहीं..
तो आओ सादगी, संतोष और आत्मसंयम के साथ मनाएं इस पावन पर्व को...
1 comment:
मिच्छामि दुक्कड़म !
वाह !
अत्यन्त पवित्र आलेख.............
उत्तम पोस्ट.............
बधाई !
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