दिल्ली शहर भले देश की राजधानी हो पर यहां रहने वाला हर आदमी भागता
दिखता है। मुझे लगता है कि दिल्ली लोगों को पूरी तरह मजदूर बना देती है।
और यह एक सुविधा सम्पन्न जीवन के लिए आवश्यक भी लगता है,जिसकी तमन्ना हर आदमी अपने लिए और अपने परिवार के लिए रखता है। मुझे इसी तरह की एक कहानी याद आती है कि एक राजा एक बार प्रसन्न होकर एक व्यक्ति को इनाम स्वरूप जमीन देता है और कहता है कि जितनी जमीन तुम सुबह से साम तक कदमों से मापकर ले पाओ ले लों, वह तुम्हारी हो जाएगी, व्यक्ति प्रसन्नता से सुवह जल्दी निकलता है और ज्यादा के चक्कर में दौड़ते-भागते जब वापस आता है तो अधिक जमीन की लालसा में पड़कर वह इतना थक चुका होता है कि वह अपने प्राण गवा बैठता है । दिल्ली में रहने वाले लोगों का हाल कुछ इसी तरह का है।
जीवन कहां से शुरु हुआ और कब खत्म होने को है कुछ सोचने का समय नही। बस ज्यादा से ज्यादा धनार्जन करने में लगे रहना ही इनका कर्तव्य बन गया है, इनके पास न तो किसी के लिए समय है और न ही खुद के या आत्म चिन्तन के लिये...
भाई वाह रे दिल्ली...
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