भारत देश अब घोटालों का देश बनता जा रहा है। यहॉ आए दिन घोटाले होते रहते हैं। पहले जहॉ इसे शर्म से डूब मरने वाली बात मानी जाती थी वही अब इसे फैशन समझकर नामी-गिरामी नेता अपनाते जा रहे हैं। यह अब कोई बड़ा अपराध नही रह गया। पहले की बात की जाए तो राजीव गॉधी के समय उनके कुछ करोड़ के घोटाले का पर्दाफास होने से कांग्रेस की सरकार को सत्ता से हाथ धोने पड़ गए थे,और अब तो लालू ,कोड़ा और हाल ही में हुए कॉमनवेल्थ गेम में अरबों रुपए का घोटाला होने के बावजूद भी सरकार क्या घूस खोर भी अपनी जगह पर ही खिल-खिलाकर हंसते देखे जा सकते हैं।कहते हैं जमाना बदल गया अब तो नेता आपस में मिलने पर यही पूछते हैं कि तुमने कितने घोटाले किए। खैर जाने दीजिए इन बातों में हम पढ़े ही क्यों? लेकिन एक बात जरुर समझना चाहता हूं, आखिर देश को धोके में डालकर या उससे गद्दारी करके कमाएं करोड़ो रुपए से अपनी तिजोरी भरने वाले ये गद्दा कितने फल-फूल पाएंगे? आखिरकार पैसे से खाना आ सकता है, पर उसे खाने के लिए भूख कहॉ से लाओगे ? पैसे से भीड़ मिल सकती है, पर सच्चा प्यार कहॉ से लाओगे ? आराम के बिस्तर लाए जा सकते हैं पर आराम या नींद कहॉ से लाएगे ?
आदमी को आदमी में खोजता हूं में।
जाने क्यों परमात्मा से जूझता हू में।।
हॉ पता है कल ये धरती नाज देती थी।
हुई बंजर अब भला क्या खाक देती है।।
u tell i search
Sunday, October 31, 2010
Thursday, October 21, 2010
क्या हम जिन्दा है ?
देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सभी व्यवस्थाये चरमरा रही है : और इसकी वजह है आचार की जगह दुराचार का बोल-बाला होना : इसको बढ़ाबा देने वाले भी कोई और नहीं हम खुद ही है : अब तो दुराचार फैशन बन गया है : ऐसा नहीं कि पहले दुराचार नहीं था : पर तब दुराचार को दुराचार समझा जाता था, और दुराचारी को एक डर बना रहता था : लेकिन अब तो इन्ही की जमात देखने को मिलती है : जो आधुनिकता और फैशन के नाम पर इसे दिन-दुनी रात-चौगनी गति से बढ़ने मै लगे है : और कही न कही हम भी इसे फैलाने मै उनका सहयोग कर रहे है :पहले दुराचार की बात सोचना भी गलत माना जाता था, फिर मात्र करना गलत माना जाने लगा, धीरे-धीरे दुराचार करना नहीं मात्र दुराचारी कहलाना गलत माना जाने लगा और अब तो यह फैशन मै है :
Tuesday, October 5, 2010
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